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कोशी के तीरेॅ-तीरेॅ / भाग 7 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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बहू साथें माय कुन्ती नें
तबेॅ तोंही हे कोशी माय
पूरा होय में मदद करलोॅ रहौ
वनवास के ऊ कठिन अवधि केॅ, आसानो
मतरकि आय तेॅ
तोरे पाण्डव सिनी
शरण लै रहलॉे छौं
कहीं दूर देश में
वनवास के अवधि बितावै छौं
माय कुन्ती कहीं
पत्नी द्रोपदी कहीं
आरो अभिमन्यु कहीं
चक्रव्यूह में कैद
कैद में दम तोड़तें
नै काही कृष्ण के कोय शांति-संदेश
मनोॅ में
बस एक्के ठो अपशकुन
रही-रही उभरै छै
कि काही फेनू
नै जागी जाय
तोरे माटी पर फेनू सें
वहेॅ रण
जीवन-मरण के
कुरसेला
कुरुक्षेत्र नै बनी जाय
एक नै
सौ नै
जानेॅ कत्तेॅ-कत्तेॅ कीचक
धारापाँती खाड़ोॅ होय गेलोॅ छै
कौरव के पक्षोॅ में
कृष्ण के खिलाफ में
जानेॅ की होतै
अबकी महाभारत में
जों महाभारत छिड़िये गेलै।

कभियो
यहेॅ अंग देशोॅ में
हे कोशी माय
तोरे बेटा शैलेश
तोरोॅ आदेश पावी केॅ
सुतली कनियैनी केॅ छोड़ी
चुप्पे-चाप चली देलेॅ रहौं
तोरोॅ उपासना लेली
मोरंग देश
की-की नै
सहलेॅ रहौं तोरोॅ बेटां
पर नै डिगलोॅ छेल्हौं
तोरोॅ बेटा शैलेश
टुकड़ा-टुकड़ा होय्यो केॅ
सोची लेलकै शैलेश
अभागिन औरतोॅ के
लोर पोछै में
जीवन बिताय दै के
घुरी केॅ
नै ऐल्हौं तोरोॅ ऊ बेटा
अपनी कनियैनी नगीच
अपनी माय
अपनी बहिन-भौजाय के
लोरोॅ केॅ पोछै लेॅ
हे कोशी माय
तोरोॅ ई आँखो
जे छलछलैतें रहै छौं
हम्में जानै छियै
ऊ कथी-कथी लेॅ।

भूख
गरीबी
बेकारी-बेरोजगारी
रोॅ पचिया धामिन
बहुरा गोड़िन
एक नै
धारापाँती में
ठाड़ी भै गेली छै
एक नै
सौ नै
तोरोॅ हजारो-हजार
शैलेशोॅ केॅ
गरबी दयालोॅ केॅ
आपनोॅ आहार बनाय वास्तें
ऊ जे अस्त्र सिनी
छिपाय केॅ राखी देनें रहै
पाण्डव सिनी नें आपनोॅ-आपनोॅ
तोरोॅ आँचल में
ऊ ढेर सिनी अस्त्र
हाथ लागी गेलोॅ छै
आजकोॅ कीचक के
आरो बेमत्तहोय
नाची रहलोॅ छै
चौक-चौबटिया
रास्ता-कुरास्ता पर
कृष्णोॅ के रूप धारी
कही रहलोॅ छै
हम्मीं छेकियै-कृष्ण
हमर्है पूजोॅ
हम्हीं कल्हो रहियै
हम्हीं कल्हो रहवै।