कोशी के तीरेॅ-तीरेॅ / भाग 8 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
मालूम होलोॅ छै-हे माय
कि सबकेॅ
आपने रङ बनाय वास्तें
एक कीचक नें बनैलेॅ छै
एक चभच्चा
डाली देलेॅ छै
आकरोॅ पानी में माहुर
आबेॅ जे भी लोग
आवै छै वहाँ-प्यासलोॅ-तपासलोॅ
आरो पीयै छै ओकरोॅ पानी
ऊ-वहेॅ कीचक रङ
हठाते बनी जाय छै
आरो दियेॅ लागै छै
तखयिे सें
कृष्णोॅ केॅ गाली
आपन्हैं केॅ कृष्ण बताय-बताय
सुनै में ऐलोॅ छै
ऊ सिनी कीचक
आबेॅ एकट्ठे मिली केॅ
तीन-तीन कोसोॅ पर
एहने चभच्चा बनैतै
तबेॅ की होतै
हे कोशी माय
हे अंग देश के मोक्षदा
तबेॅ कहोॅ की होतै
भूख-प्यास सें तेॅ
मरिये रहलोॅ छै लोग
तोरोॅ सन्तान सिनी
आरो तोहें जानवे करै छौ माय
भूख की नै करावै छै
है बात के नै जानै छै
कीचको केॅ मालूम छै
तहीं सें वैनें
तोरोॅ सब सरोवर
कुआँ आरो धारोॅ पर
पहरा बिठवाय देलेॅ छै
ताकि कोय्यो
तोरोॅ घाटोॅ पर
नै जावेॅ सकेॅ
नै पीयेॅ पारेॅ
तोरोॅ मोक्षदा पानी
प्यासलां की नै करेॅ
महुरैलोॅ पानी पीयै छै
जेना नै जीना चाहियोॅ
-जीयै छै
मतरकि कहाँ मिटै छै
यहू सब सें प्यास आरो भूख
खाली माहुर लहू में उतरतें रहै छै
हे कोशी माय
जों तोरोॅ ई बालू आरो पानी
पेटोॅ में जाय केॅ जमी जैतियै
तेॅ तोरोॅ है लाखो-लाख
गरीब बेटा
तोरोॅ जल केॅ
फलाहार नाँखी
कण्ठोॅ के नीचें
उतारी लेतियै
परदेश-परदेश
बालू फाँकवोॅ सें तेॅ
कहीं अच्छा होतियै
तोरोॅ पार्है नाँखी चिकनोॅ बालू आरो पानी केॅ
पेटोॅ में जमाय लेतियै
मतरकि है सब
खाली बोलै के ही छेकै
भूख तेॅ भूख छेकै
दुनियाँ रोॅ बड़का दुख छेकै
हेन्है केॅ नै
तोरोॅ लाखो-लाख बेटा
पँच-पँच मनोॅ के
हाथोॅ में कुदाल लेनें
खेतोॅ में खटै छौं
अभियो होन्है केॅ
जेना खटै छेल्हौं
तोरोॅ ऊ दीनों बेटा
दीना आरो भदरी
दिन-रात
रात-दिन
आरो अभियो होन्है केॅ
अत्याचार जारी छै
जमीन्दार कनक सिंह
अपहरण करै छै
करवाय छै
दीना आरो भदरी सिनी केॅ
जबर्दस्ती खिंचवाय छै
आरो बाघिन के आहार
बनवाय छै
बाघिन लहू पीवी-पीवी केॅ
गुर्रावै छै
दूर देश सें ऐली
एकदम खतरनाक
बनी गेलोॅ छै बाघिन
यहीं कभियो
कारू भगतो केॅ
निगली लेलेॅ रहै
सैंसे-जीत्ते जी
ओत्तेॅ बड़ोॅ भगत केॅ
महादेवोॅ के भगत केॅ
कहै छै-स्वयं भगवाने रहै
कारू भगत
ओकर्हौ नै छोड़लेॅ छेलै
यै बाघ्ज्ञिन नें
बाघिन फरक नै करै छै
साधू आरो शैतान में
भक्त आरो भूत में
ओकरा लेॅ सब आहार छेकै
कनक सिंह खुश छै
सुनै में ऐलोॅ छै
बाघिन जंगल सें निकली केॅ
कनक सिंह के
घरोॅ में रहेॅ लागलोॅ छै
केन्होॅ ई भाग जागलोॅ छै
बाघिन
केकरो प्राण लियेॅ पारेॅ
दिन-दहाड़े कखनियो
जखनी वें चाहतै तखनीये
ओकरा ई सुविधा मिललोॅ छै।