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कोशी के तीरेॅ-तीरेॅ / भाग 9 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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हे माय कोशी
लोग सिनी
तोरोॅ निमुँहा सन्तान

भोंर सें शाम तक
गावै छौं मनौन
लीन रहै छौं भगैत में
तैहियो नै
बरकै छै
तोहरोॅ मोॅन
उड़तेॅ रहै छै
धुमनोॅ आरो गुग्गुल के सुगन्ध
बाजतें रहै छै
मृदंग आरो मानर
कहीं ढोल आरो ढाक
काँपतें रहै छौं
वही सबसें
हे कोशी माय
वहाँ सें लै केॅ यहाँ तक
तोरोॅ घाट आरो किनारा
काँपतें रहै छौं कसार
आरो बड़ोॅ-बड़ोॅ
बुढ़वा पीपरोॅ के ठार
मतरकि नै उतरै छै
कोय देवता या भगवान
भगैत के धुनोॅ पर
हमरोॅ ई अंगुत्तराप
हमरोॅ ई कोशिकी
अछूते रही जाय छै
आबेॅ बार-बार
तोरोॅ ममता सें
भगवानोॅ के वरदान सें
कृष्ण के ई ढाढ़स सें
कि जबेॅ-जबेॅ
धरती पर अधर्म फैलै छै

हम्में बार-बार
अधर्म के नाश लेली
आरो धर्म के रक्षा वास्तें
अवतार लै छियै।
सब कथन
चाहे देवता के रहौ
आकि कोय धर्मग्रन्थोॅ के
सब झूठ लागै छै।

हे कोशी माय
तोरोॅ ई चाँदी आरो
तांबा रङ माटी पर
जबेॅ भूख सें
हम्मंे मरतें देखै छियै
तोरे हजारो-हजार सन्तानोॅ केॅ
तखनी
यहू बात झूठ लागै छै
कि आत्मा अनश्वर छै
नै एकरा आगिन जारेॅ पारेॅ
नै पानी गलावेॅ पारेॅ
नै हवा उड़ावेॅ पारेॅ।
हुवेॅ सकै छै
ई सब बात सच्चो रहेॅ
मतरकि है नै हुवेॅ पारेॅ
कि भूख
हेकरा नै मारेॅ पारेॅ
भूख आत्मा तक केॅ मारी दै छै
घायल करी दै छै
एकदम सें लहूलुहान
हमरा यहेॅ विश्वास हुवेॅ लागै छै
जबेॅ-जबेॅ भी

हम्में देखै छियै
आपने माटी पर
भूख सें तड़पतें
लहूलुहान होतें
सूखी केॅ कंकाल बनतें
आपने भाय सिनी केॅ
तखनी लागै छै
सब झूठ
देववाणी झूठ
देवता झूठ
देवदूत झूठ
परचा झूठ
लिखन्त झूठ
पढ़न्त झूठ
सच-बस एक्के टा बात
कि पेट के कुरूक्षेत्र में
हे कोशी माय
तोरोॅ कुछुवे बेटा
पाण्डव-सेना में
पाँच पाण्डव
आरो कुछ पाण्डव-सेना नाँखी
बची रहलोॅ छौं
बाकी तेॅ सब
मरी चुकलोॅ छै
जे छलमलाय रहल छै
जे हुक-हुक कैइर रहल छै
ऊ सब मरले दाखिल छै
या फेनू
ऊ सब मरले होलोॅ छै।
हमरा याद छै
हे कौशिकी माय

तोरोॅ चाँदीवाला ई चादर पर
कभी लेटी केॅ
आरो कभी बैठी केॅ
हमरोॅ दादां
हमरा ई किस्सा सुनाबै रहै
कि एक महात्मा रहै
हुनी गंगा केॅ
जानेॅ कहाँ-कहाँ सें
निकलवाय केॅ
ई अंगदेश तक
लै आनलेॅ रहै
कोय राजा के
कै हजार मृत सन्तानोॅ केॅ
जीत्तोॅ कै लेली
जीवी उठलोॅ रहै
राजा रोॅ सब्भे ठो सन्तान।
हे कौशिकी माय
कि आबेॅ
ई माटी पर
तोरोॅ आरो जाह्नवी गंगा के रहथौं
तोरे विष होतेॅ पानी केॅ
पीवी-पीवी
कहीं डायरिया सें
मरी रहलोॅ छौं
तेॅ कहीं हैजा सें
कहीं नाग-यज्ञ होय रहलोॅ छै
तेॅ कहीं पशु-यज्ञ होय रहलोॅ छै
आरो तेॅ कहीं
नरमेघ यज्ञे होय रहलोॅ छै
आरो एतना होला के बादो
काही कोय