भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोशी / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिम-आलय सें गोड़ बढ़ावै
अंग महाजनपद में आवै
कत्तेॅ-कत्तेॅ कथा सुनावै
कोशी माय सबके दुलरावै।

जखनी खौलै कोशी माय
हित-अनहित नै जरो बुझाय
जे भी मिलै दहैलेॅ जाय
जों गोस्सावै कोशी माय।

औंटल पौंटल सबकेॅ गेल
पानी पर तिनसुकिया रेल
गोड़ लगै छी कोशी माय
बाघिन बदला रहियोॅ गाय।