भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोसी अँचल में बाढ़ (2008)-3 / मुसाफ़िर बैठा
Kavita Kosh से
इस जल-प्रलय की मार
जान माल की हानि ही नहीं
बदहवास दौड़ भाग चीख पुकार ही नहीं
एक दूजे का बंधु बांधवों से
बिछुड़ने बिखरने में ही नहीं
इस जल-कहर के रचयिता
कोसी मैया की ही गुहार लगाने
उसकी पूजा-अभ्यर्थना करने में भी
अभिव्यक्त होती है
त्रााता से ही त्रााण की गुहार
आसरा असहायता की इंतिहा रचती है
और इस विभीषिका की
दारुण दुख कथा कहती है