कोहबर बैठल सुन्नर, घुरुमै घुरुमै जोती हे / अंगिका लोकगीत
कोहबर में पति ने पत्नी को सौंदर्यवर्द्धन का उपाय बतलाया। उबटन लगाते समय पत्नी ने पति के जन्म की घटना का विवरण जानना चाहा। पति ने अपने जन्म के समय की सुख-समृद्धि का उल्लेख करते हुए माँ-बाप द्वारा दिये गये आशीर्वचन का भी वर्णन किया। पत्नी को इन बातों को सुनकर संतोष हुआ। उसके उत्तर में पत्नी का यह कहना कितना स्वाभाविक और कारुणिक है- ‘प्रभु मेरे लिए तुम्हीं ईश्वर हो और मेरे शरीर की ज्योति हो। तुम्हारे बिना मुझे नींद नहीं आती और आधा पलंग भी सूना लगता है।’ इस गीत में पतिपरायणा पत्नी का बहुत ही सुंदर चित्रण हुआ है।
कोहबर बैठल सुन्नर, घुरुमैं<ref>चक्कर काटना; कस्ती में चक्कर आना</ref> घुरुमै जोती<ref>ज्योति</ref> हे।
मलिया के बरिया<ref>घर से सटे हुए एक प्रकार की फुलवारी, इसमें फूल, फल तथा सब्जी की खेती होती है</ref> में अमरस फलबा, औरो फुलै कचनार हे॥1॥
एहो अमरस खैहे<ref>खाना</ref> गे सुन्नरी, खूगी<ref>खुल जायगा</ref> जैतो बदन के जोत हे।
कथिअहिं<ref>किस चीज से</ref> पीसब कथिय<ref>किस चीज में</ref> उठायब, कथिय भरिय रस भेल हे॥2॥
लोड़ियहिं<ref>सिल पर पीसने के लिए पत्थर का गोल, लंबा टुकड़ा, लोढ़ा</ref> पीसब कटोरिय उठायब, कटोरे भरिय रस भेल हे।
एहो अमरस पीने<ref>पीने से</ref> गे सुन्नरी, खूगी जैतौ बदन के जोत हे॥3॥
मलिबहिं<ref>मलिया; तेल रखने का पात्र</ref> उबटन कटोरबहिं तेल, एहो लगैहों आठो अँग हे॥4॥
तेल लगबैत परभु एक बात पूछऊँ, कोन दिन जमन तोहार हे।
जहि दिन अगे सुन्नरी हमरो जनम भेल, भै गेल सगरे<ref>सर्वत्र</ref> इँजोर हे॥5॥
बाबा आसीक<ref>आशीष</ref> देल राजबली होइहें, भोगिहें अजोधा राज हे।
अम्माँ आसीक देल अम्मर होइहें, दोनों मिलि भोगिहें राज हे॥6॥
तोहिं परभु ईसर तोहिं परमेसर, तोहिं परभु बदन के जोत हे।
तोरा बिनु आहे परभु नीनो<ref>नींद भी</ref> न होबै, आधा पलँग लागे सून हे॥7॥