भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोहबर में अइलें राम इहो चारों भइया / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
कोहबर में अइलें राम इहो चारों भइया।
से हमनी के मोहलें परानवाँ हो लाल।
एक टक लागे सखी पलकों ना लागे
से भूले नाहीं तोतरी बचनवाँ हो लाल।
हँसी-हँसी पूछेली सारी से सरहज
से फेरू कब अइबऽ ससुरिया हो लाल।
तोहरो सुरतिया देखी जियरा लोभइलें
से नीको नाहीं लागेला अटरिया हो लाल।
जाहीं के जो रहे राम अवध नगरिया त
काहे के धनुहिया उठवलऽ हो लाल।
कहत महेन्द्र राम रहि जा भवनवाँ
से हमनी के छोड़ी कहाँ जइबऽ हो लाल।