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कोहरीले धुंधले बादलों को पार कर आईं तुम / ओसिप मंदेलश्ताम
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कोहरीले
धुंधले बादलों को
पार कर आईं तुम
तुम्हारे कोमल गाल
हो उठे हैं लाल
दिन यह ठंडा बहुत बीमार है
और मैं डोल रहा हूँ यूँ ही
बदहवास-सा
मेरे ऊपर आलस्य और
उदासी सवार है
यह दुष्ट पतझड़
टोटका कर रहा है हम पर
पके फलों से धमकाए
देखो तो कैसे झूम रहा है
शिखरों से बात करे वह
चोटी पर चढ़कर
मकड़ी के जालों की जैसे
आँखें चूम रहा है
तेरे गालों की लाली का
यह कैसा प्रमाद है सब पर
जीवन का बेचैन नृत्य
चुपके से रुक गया है
उभर रहा है सूर्य अरुणिम
दूर वहाँ क्षितिज पर
धुंधले बादलों का कोहरा
पीछे छुप गया है
(रचनाकाल : 1911)