भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोहरीले धुंधले बादलों को पार कर आईं तुम / ओसिप मंदेलश्ताम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: ओसिप मंदेलश्ताम  » संग्रह: तेरे क़दमों का संगीत
»  कोहरीले धुंधले बादलों को पार कर आईं तुम

कोहरीले

धुंधले बादलों को

पार कर आईं तुम

तुम्हारे कोमल गाल

हो उठे हैं लाल


दिन यह ठंडा बहुत बीमार है

और मैं डोल रहा हूँ यूँ ही

बदहवास-सा

मेरे ऊपर आलस्य और

उदासी सवार है


यह दुष्ट पतझड़

टोटका कर रहा है हम पर

पके फलों से धमकाए

देखो तो कैसे झूम रहा है

शिखरों से बात करे वह

चोटी पर चढ़कर

मकड़ी के जालों की जैसे

आँखें चूम रहा है


तेरे गालों की लाली का

यह कैसा प्रमाद है सब पर

जीवन का बेचैन नृत्य

चुपके से रुक गया है

उभर रहा है सूर्य अरुणिम

दूर वहाँ क्षितिज पर

धुंधले बादलों का कोहरा

पीछे छुप गया है


(रचनाकाल : 1911)