हेमन्तें कानोॅ मेॅ की कहलकै
अगहन आरोॅ पूस
कि दोनो के सिहरी गेलै देह
सिहरतै रही गेलै दोनो
कुछ हेने कि पतो नै चललै
कन्नेॅ सेॅ आवी केॅ
छूवी रहलोॅ छेलै देह, तीनो के
की पच्छिम सॅे आवै वाला हवा
की उत्तर सेॅ आवै वाला
की दोनों दिशा सेॅ
आवी-आवी केॅ?
कोय कुछ बूझौ कि नै बूझौ
सब बात बूझे छै
जौ आरो गेहूँ के लहलहैतेॅ खेत
पता नै
पोखर आरो नद्दी नेॅ की जानलकै
कि भोरे भोर आह भरी रहलोॅ छै।
हौं, ई आहे छेकै
भोर भोर पानी सेॅ उठतेॅ
भाप थोड़े छेकै।