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कौने मासे मेघ गरजिये गेलै, बूँद बरसिये गेलै हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

वर्षाकाल में पति सहवास के बाद परदेश चला जाता है और पत्नी गर्भवती हो जाती है। निश्चित समय पर प्रसव-वेदना प्रारंभ होती है। प्रसव-जनित असह्य वेदना से वह व्याकुल हो उठती है और सोचने लगती है कि पिताजी ने मेरी शादी क्यों की तथा मुझे विदा क्यों किया? अगर मैं क्वाँपरी रहती, तो ऐसी वेदना नहीं सहनी पड़ती। किन्तु, जब पुत्र उत्पन्न हो जाता है, तब वह उसे देखकर अपना सारा दुःख भूल जाती है तथा विवाह और विदा करने के लिए पिता के प्रति कृतज्ञत प्रकट करती है। अंत में, वह यह भी सोचती है कि अगर मैं क्वाँरी रहती, तो ऐसा सुंदर बालक कहाँ से पाती?
इस गीत में पुत्र के प्रति स्त्री का मोह और वात्सल्य झलकता है।

कौने मासे मेघ गरजिये गेल, बूँद बरसिये गेल हे।
ललना, कौने मासे पिया गेल परदेस, गरभ मोहिं रही गेल हे॥1॥
सावन मासे मेघ गरजी गल, बूँद बरसी गेल हे।
ललना, भादो मासे पिया गेल परदेस, गरभ मोहिं रही गेल हे॥2॥
मास ही मास जब बीती गेल, आरे नव मासे हे।
तबे छिनरो के उठी गेल दरद, बबुआ जनम लेल हे॥3॥
कथि लेली बाबूजी बिआह कैलखिन, हमरा क बिदा कैलखिन हे।
ललना, रहतौं में बारी कुँआरी, दरदो नहीं जानते हे॥4॥
आधी रात अगली, आधी रात पछली न हे।
ललना, बीचली राती बबुआ जलम लेल, देखै में सुहावन लागै हे॥5॥
भले लेली बाबूजी बिआह कैलखिन, हमरा क बिदा कैलखिन हे।
ललना, रहते में बारी कुँआरी, बबुआ कहाँ पैतेॅ हे॥6॥

शब्दार्थ
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