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कौने वने उपजल नरियर, कौने वन केसर हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पति की फुलवारी के गुलाब से साड़ी को रँगवाकर तथा उसे पहनकर सुन्दरी स्त्री आँगन में खड़ी हुई।उसकी अनुभवी सास ने उसके चेहरे को देखकर समझ लिया कि यह गर्भवती हो गई है। सास को शंका हुई कि मेरा लड़ता तो घर से बाहर बँगले पर सोता है, यह गर्भवती कैसे हो गई? उसे उसके चरित्र पर शंका होने लगी। उसकी पुत्रवधू ने शंका-निवारण के लिए मेघ से प्रार्थना की। वर्षा होने लगी। उसका पति छिपकर उसके पास आया। उपयुक्त अवसर पर उस स्त्री ने सास को उसके पुत्र को दिखलाकर उसकी शंका का निवारण किया। स्त्री का चरित्र ही उसका सबसे बड़ा धन है।

कौने बने उपजल नरियर, कौने बन केसर हे।
जलना रे, कौने बन चुअलै गुलाब, चुनरिया हम रँगायब हे॥1॥
बाबा बने उपजल नरियर, भैया बने केसर हे।
ललना रे, पिया बने चुअले गुलाब, चुनरिया हम रँगायब हे॥2॥
सेहो चुनरी पिन्ही<ref>पहनकर</ref> हम ठाढ़ी भेलैं, माँझ<ref>मध्य; बीच</ref> त अँगनमा बीच हे।
ललना रे, सासु निरेखै मोर बदनमा, तू पुतहू गरभ सेॅ<ref>गर्भ से; गर्भवती</ref> हे॥3॥
बेटा मोरा सुतै बँगलवा<ref>घर के बाहर के बैठक में; दरवाजे पर; दालान पर</ref>, पुतहुआ मुनहर घर<ref>मकान के भीतरी हिस्से का कमरा</ref> हे।
ललना रे, कौने रे रसिकवा से लोेभायल, त पुतहू गरभ सेॅ हे॥4॥
बरिसहु हे मेघ बरिसहु, बरिसहु सोने बूंद हे।
ललना रे, ओते ओते<ref>ओट में लुक-छिपकर</ref> ऐतन बलमुआ, कि सिर के कलंक मेटत हे॥5॥
मँचिया बैठल मोरी सासु छेकी हे, कि सासु छेकी हे।
ललना रे, चिन्ही लिअऽ सासु अपन बेटवा, कलंक मोर मेटि दिअऊ हे॥6॥

शब्दार्थ
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