कौने हेरल बर कौने खोजल बर / अंगिका लोकगीत
लड़की ऐसे उन्मत्त दूलहे को ढूँढ़कर लाने के लिए नाई, ब्राह्मण और अपने भाई को भला-बुरा कह रही है। दुलहा आते ही विवाह की चीजों को तहस-नहस करने लगा। लड़की की माँ अपनी बेटी को लेकर घर में छिप गई। वह कहने लगी-भले ही मेरी गौरी कुमारी रह जाय, लेकिन ऐसे उन्मत्त वर से अपनी बेटी का विवाह मैं कदापि नहीं करूँगी।’ अंत में शिव स्नानादि करके चौके पर बैठे और उन्होंने अपनी सास से अपना सुंदर रूप देखने का आग्रह किया।
कौने हेरल बर कौने खोजल बर, केकर हेरल गियान हे।
नौआ हेरल बर बराम्हन खोजल बर, बाबा के हेरल गियान हे॥1॥
नोआ के दाढ़ी जरिहौक[1], बराम्हन के हीन होएहौक[2] गियान हे।
भैया निरदैयाँ आनि मेरैलक[3], जनमों के तपसी भिखारी हे॥2॥
लगहर[4] फेंकल, पुगहर[5], फेंकल चारो मुख[6] दीप हे।
धिआ ल मनाइलो[7], मंडिल पैसल, लागि गेलै बजर केबाड़ हे॥3॥
ऐसन उनमत[8] बर हमें नै बियाहबे, गौरी धिया रहती कुमारी हे।
नहाय सोन्हाय सिब, चौंका बैठलो, देखो सासु सकल[9] हमार हे॥4॥