भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन-सा रूप ध्यान में लाऊँ! / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
कौन-सा रूप ध्यान में लाऊँ!
इतने वेश बदलते स्वामी! किस पर नयन टिकाऊँ!
कभी यशोदा का आँचल धर
माँग रहे माखन रो-रोकर
कभी कुंज में यमुना-तट पर
वेणु बजाते पाऊँ
कभी चुराकर माखन खायें
कभी विराट रूप दिखलायें
शेष न होंगी वे लीलायें
जीवन भर भी गाऊँ
किन्तु प्रेम, प्रभु! कैसा साधा!
ब्रज का मिलन रह गया आधा!
सिसक रही है विरहिन राधा
कैसे उसे मनाऊँ?
कौन-सा रूप ध्यान में लाऊँ!
इतने वेश बदलते स्वामी! किस पर नयन टिकाऊँ!