भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन अपनी जुल्फ़ कहीं खोलकर / वीरेन्द्र कुमार जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौन अपनी जुल्फ़ कहीं
खोलकर सँवार रही है
कि हवाएँ ऐसी हसीन और शरशार हो गई हैं :
जाने किस कल्प-सरोवर में
नहा रही है कोई मृदुला सुन्दरी
कि मैं अनायास दिगम्बर हो उठा हूँ,
और मेरे हम्माम के पानी में
सुगन्धों भरे स्पर्श लहरा रहे हैं...!