भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन आए इधर या उधर से यहाँ / अविनाश भारती
Kavita Kosh से
कौन आए इधर या उधर से यहाँ,
सुब्ह भी गर्म है दोपहर से यहाँ।
शौक़ से मत कहो पेट के वास्ते,
दूर हैं हम सभी अपने घर से यहाँ।
बाप से हैं खफ़ा घर के बेटे सभी,
दूर जैसे परिंदे शजर से यहाँ।
क्यों नहीं है दिखाता ख़बर ये कोई,
जो भी देखी है सबने नज़र से यहाँ।
एक दूजे के दुश्मन बने हैं सभी,
मौत होती नहीं अब ज़हर से यहाँ।
बात 'अविनाश' ईमां की करते हो तुम
लोग उठते कहाँ हैं कमर से यहाँ।