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कौन आता है, फ़र्क़ कुछ भी नहीं / विजय किशोर मानव

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कौन आता है, फ़र्क़ कुछ भी नहीं
कैसे खाता है, फ़र्क़ कुछ भी नहीं

कौन चिल्ला रहा है पुश्तों से,
कौन गाता है, फ़र्क़ कुछ भी नहीं

रात के घर, वो रोशनी के लिए
क्या जलाता है, फ़र्क़ कुछ भी नहीं

अपने भीतर, वो रोशनी के लिए
दिल जलाता है, फ़र्क़ कुछ भी नहीं

इस सियासत का कैसे-कैसों से,
कैसा नाता है, फ़र्क़ कुछ भी नहीं

वो पसीने से तर निकलता है,
लौट आता है, फ़र्क़ कुछ भी नहीं

स्वर्ग और नर्क किसने देखा है,
किसमें जाता है, फ़र्क़ कुछ भी नहीं