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कौन आता है सपना बन के / गुलाब खंडेलवाल

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कौन आता है सपना बन के
निद्रा के पथ से स्मृतियों के नव वसन पहन के

रूप कि ज्यों मोती में पानी
नयनों में पीड़ा अनजानी
कहता है अनकही कहानी
द्वार खोल कर मन के

तार छेड़ देता वीणा के
राग न जाने कहाँ कहाँ के
पा न सका जिनको पा-पा के
भाव लिये उस क्षण के

कौन आता है सपना बन के
निद्रा के पथ से स्मृतियों के नव वसन पहन के