एक दिन अपने जीवन के सत्तरवें वर्ष में
जब मैंने कोशिश की याद करने की कि कैसा अनुभव था
दुनिया में नवागंतुक होने का और स्वयं
ढूँढ़ना उसकी सात और सत्तर निविष्टियों को
तब मदद ली मैंने एक अवकाशप्राप्त प्रोफ़ेसर से,
सात भाषाओँ में दक्ष,
जो अश्रु पूर्ण नेत्रों से खड़ा था कक्ष में
और ढूंढ़ रहा था हाथ घुसाने की जगह कोट के आस्तीन में.
वह स्वयं करना चाहता था यह.
और हममें से कौन एक बच्चा नहीं है
और कौन नहीं है वह प्रोफ़ेसर?
(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)