भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन कहता है गुम हुआ परतव / ज़क़ी तारिक़
Kavita Kosh से
कौन कहता है गुम हुआ परतव
लहज़ा लहज़ा है आईना परतव
हर तरफ़ छा गया है इक जलवा
जाने किस का ये पड़ गया परतव
नक़्श पलकों पे जब हुआ रौशन
अपनी आँखों में भर लिया परतव
मेरे अंदर निहाँ है अक्स मेरा
आईने में है आप का परतव
डर रहा है 'ज़की' अँधेरों से
खो न जाए कहीं तेरा परतव