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कौन कहता है ढलती नहीं ग़म की रात (कविता) / दिनकर कुमार

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कौन कहता है कि
ढलती नहीं ग़म की रात

मोमबत्ती की तरह
हृदय में धीरे-धीरे पिघलती है याद
आँसुओं से धुल जाती है
कलुषता, घात-प्रतिघात
कौन कहता है कि
ढलती नहीं ग़म की रात

अभाव की लोरी सुनकर
चान्द के सपने देखते हैं अबोध बच्चे
परियों के देश में उत्सव का शोर
आँगनबाड़ी में सड़ा हुआ भात
पड़ोसी का जूठन
प्रभु का अनुदान
अवसाद के बिस्तर पर
‘बैरन निन्दिया' का इन्तज़ार
कौन कहता है कि
ढलती नहीं ग़म की रात
 
बीज के सपने देखते हैं खेत
सावन का सपना देखता है चातक
आग का सपना देखता है चूल्हा
सपनों की शोभायात्रा निकलती है
रात चाहे कैसी भी हो —
ज़रूर ढलती है