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कौन किसका हबीब क्या कहिए / कांतिमोहन 'सोज़'

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कौन किसका हबीब क्या कहिए ।
खुद उठाएँ सलीब क्या कहिए ।।

क़ैद में है ये हाल क्या कम है
ख्वाहिशे-अंदलीब क्या कहिए ।

आप हर बात ठीक कहते हैं
अपना-अपना नसीब क्या कहिए ।

उनकी ख़सलत थी कुछ जुदागाना
हम भी कुछ थे अजीब क्या कहिए ।

आज ये किसकी आमद-आमद है
दिल के इतने क़रीब क्या कहिए ।

मैं ज़माने को भा गया यारो
वरना ज़िक्रे-अदीब क्या कहिए ।

सोज़ पर भी करम किया होता
वो था बेहद ग़रीब क्या कहिए ।।