कौन किस वाणी कहे कोई किस कान सुने,
याचक की याचना कहानी हुई जाती है।
रूप, रस, गन्ध में नवीनता दिखाती नहीं,
पावनतम प्रीति भी पुरानी हुई जाती है।
दर्शन दे शीतल बनाओ तप्त लोचनों को,
जीवन की ज्योति पानी हुई जाती है।
चरण बढ़ाओ, आओ करुणा का वरण करो,
अनब्याही साधना सयानी हुई जाती है।