कौन खेले फाग / उर्मिल सत्यभूषण
विष भरे वातावरण में कौन खेले फाग
होली क्या मनायें
हर दिशा धूमिल हुई है हर तरफ है आग
होली क्या मनायें
मिलन को आतुर हृदय है
नेह की बांहे बढ़ी हैं
सामने संवेदनाओं की मगर
लाशें पड़ी हैं।
नफरतों के ब्यूह में गुमसुम खड़ा अनुराग
होली क्या मनायें
फांस सी अटकी पड़ी है
हर मधुर मनुहार में
बेगुनाही कत्ल होती है
सरे बाज़ार में
गोलियों की गूंज में सुनते नहीं है राग
होली क्या मनायें
सप्तवर्णी फूल वाली
फागुनी यह शाम आई
रसभरे हैं जाम लाई
रंगभरे पैग़ाम लाई
संशय के फिर भी कहीं फुंकारते हैं नाग
होली क्या मनायें।
पांव में पायल पहन
अठखेलियां करती हवायें
नाचती कलियां, सुमन, पत्ते
बौराई सी लतायें
यूं तो यह माहौल मादक पर नहीं बेदाग
होली क्या मनायें।
शब्द बन चिंगारियां
हर और ही उड़ने लगे हैं
रोष के, आक्रोश के
मेले यहाँ जुड़ने लगे हैं।
डर है यह, मदहोशियों में लग न
जायें आग
होली क्या मनायें।