Last modified on 20 अक्टूबर 2009, at 11:23

कौन गुमान करो जिन्दगी का? / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

कौन गुमान करो जिन्दगी का?
जो कुछ है कुल मान उन्हीं का।

बाँधे हुए घर-बार तुम्हारे,
माथे है नील का टीका,
दाग़-दाग़ कुल अंग स्याह हैं
रंग रहा है फीका--
तुम्हारा कोई न जी का।

एक भरोसा, एक सहारा,
वारा-न्यारा बन्दगी का,
ज्ञान गठा कब, मान हुआ कब,
ध्यान गया जब पी का,
बना कब आन किसीका?