भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन चितेरा चँचल मन से / शिवकुमार 'बिलगरामी'
Kavita Kosh से
कौन चितेरा चँचल मन से अन्तर मन में झाँक रहा है ।
कौन हमारे मन की ताक़त अपने मन से आँक रहा है ।
कौन पथिक है अति उत्साही
पथ के जो निर्देश न माने,
प्रेमपथों के सत्य न समझे,
प्रेमपथों के मोड़ न जाने,
कौन हठीला दुर्गम पथ पर, मन के घोड़े हाँक रहा है ।
किसने मेरे सपने देखे
किसको गहरी नीन्द न आए,
कौन उनीन्दा जाग रहा है
अर्ध निशा में दीप जलाए,
कौन विधर्मी तप्त हृदय में, चान्द रुपहला टाँक रहा है ।
कौन विरत है खुद के तन से
किसका ख़ुद पर ध्यान नहीं है,
किसने दंश न झेले तन पर
किसको विष का ज्ञान नहीं है,
कौन सँपेरा साँप पिटारी, खोल रहा है, ढाँक रहा है ।