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कौन तम के पार ? / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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कौन तम के पार ?-- (रे, कह)
अखिल पल के स्रोत, जल-जग,
          गगन घन-घन-धार--(रे, कह)

गंध-व्याकुल-कूल- उर-सर,
लहर-कच कर कमल-मुख-पर,
हर्ष-अलि हर स्पर्श-शर, सर,\
          गूँज बारम्बार !-- (रे, कह)

उदय मेम तम-भेद सुनयन,
अस्त-दल ढक पलक-कल तन,
निशा-प्रिय-उर-शयन सुख -धान
           सार या कि असार ?-- (रे, कह)

बरसता आतप यथा जल
कलुष से कृत सुहृत कोमल,
अशिव उपलाकार मंगल,
          द्रवित जल निहार !-- (रे, कह)