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कौन दुनिया से बादा-ख़्वार उठा / शेख़ अली बख़्श 'बीमार'

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कौन दुनिया से बादा-ख़्वार उठा
चश्म-ए-तर अब्र-ए-नौ-बहार उठा

खा के ग़श गिर पड़े खड़े बैठे
बैठ कर इस अदा के यार उठा

आतिश-ए-इश्क़ देख कर मालिक
अल-अमाँ अल-अमाँ पुकार उठा

दर्द ताज़ीम-ए-मर्ग को दिल में
शब-ए-फ़ुर्कत हज़ार बार उठा

जीेते-जी दौर-ए-आसमानी में
न ज़मीं से ये ख़ाक-सार उठा

अब्र-ए-रहमत ने दे दिया छींटा
बाद मरने के जब ग़ुबार उठा

वहशत-ए-दिल ने फिर निकाले पाँव
फिर तहम्मुल का इख़्तियार उठा


फिर जुनूँ फ़स्ल-ए-गुल में लाया रंग
फिर मैं होने का शर्म-सार उठा

हाल-ए-‘बीमार’ जा-ए-रिक़्क़त है
मरहम-ए-दिल का ऐतबार उठा

चोर ज़ख़्म-ए-जिगर में बैठ गया
चारागर हो के शर्म-सार उठा