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कौन द्वार पर आया / प्रेमलता त्रिपाठी

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जाग उठा तन तंद्रा टूटी,सहसा मन घबराया ।
रात सलोनी बीत चली अब,कौन द्वार पर आया ।

नीरव सी है सकल दिशाएँ,चली हवा तन छूकर
स्वप्नों की देहरी भी मौन, पर साँकल खटकाया ।

हृदय बीथिका हर्षित तन, धड़कन गीत सुनाये ,
कुहुँक कोयली कर्ण कुहर में,भ्रमर सुमन भरमाया ।

तुम न आये प्रियतम प्रहरी,यादों के दीप जलाती ।
सूनी सेज सँवारूँ साजन, दर्पण भी शरमाया ।

तपन सहा बारूदी तुमनें,मान देश का रखकर,
छाती अरि की दहलाकर,परचम जो लहराया ।

बाट जोहती प्रिया तुम्हारी, सपने जागे मन में,
मिला प्रेम संदेश अचानक,मन कुसुमित हरषाया ।