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कौन मेरा साथी है / अमरेन्द्र

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कौन मेरा साथी है, अय साथी मन
मन ही पढ़े और हुआ है पाती-मन।

जब से तुम बिछुड़े हो, कैसा मैं सूना हूँ
गरमी की प्यास-ताप जैसा दुख दूना हूँ
अब भी है एक छवि मेरी इन आँखों में
आँखों में वैसे किसी की, मैं हूँ ना हूँ
मुझ पर ही घात करे मेरा यह घाती मन।

साँसों की नागिन अब प्राणों पर डोले
पंछी न बैठेंगे, जितना भी रो ले
सुधियों की फसलें थीं जो भी लहराई
बरस गये उन पर ही लगातर ओले
प्रीत क्यों लगाई रे, उत्पाती मन।

किसने चुराए दिन फूलों के लह-लह
यमुना-सी काया है, पीड़ा को सह-सह
गोकुल के सपने और मुरली कौन छीन गया
विरहा, उदासी के सुर सजते रह-रह
जीवन, अब सन्ध्या-सी, संझबाती-मन।