भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन यह तूफान रोके / बेढब बनारसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौन यह तूफान रोके
जोर से सीटी बजाई, फिर हरी झंडी दिखाई
बैठ भी पाईं न थीं वह, गार्ड ने गाड़ी भगाई
रह गया मुंह ताकता मैं, हृदय के अरमान रोके
हाथ भी न मिला सका मैं, पान भी न खिला सका मैं
जा रही थी प्रेम की लस्सी उन्हें न पिला सका मैं
चल पडी तूफान गाड़ी, मैं खडा था प्राण रोके
हाथ में चप्पल उठाकर, पाँव जल्दी से बढ़ाकर
दौड़कर चाहा की हो लूँ ट्रेन के मैं भी बराबर
देखता हूँ है मुझे कानिस्टेबल बलवान रोके
मैं अहिंसा हूँ बरतता, नहीं तो इनसे समझता
गार्डकी भी ड्राइवर की, भी मरम्मत खूब करता
हाथ में लेकर खडा हूँ आज पादत्राण रोके
खींच लो जंजीर कोई, हरो दिल की पीर कोई
रेल पर लेटो, चले अंजन नहीं, है वीर कोई
रुक नहीं सकती किसीसे, ट्रेन यह बेजान रोके
पलेटफारम है भरा सा, मैं खडा हूँ अधमरा सा
रोक दे गाडी नहीं क्या, बल किसी में है ज़रा सा
देश का उत्थान है जिस भाँति पाकिस्तान रोके
जानता यह हाल होगा, गार्ड मेरा काल होगा
यह विदाई का समय मेरे लिए जंजाल होगा
हो खडा जाता कुली को मैं पकड़ सामान रोके
रुक न पाई रेलगाड़ी, मैं खडा जैसे कबाड़ी
डर मुझे है फेल हो जाए कहीं मेरी न नाडी
रोक दे गाड़ी अगर तुझसे रुके भगवान रोके

(डॉ. बच्चन के 'कौन यह तूफान रोके' की पैरोडी)