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कौन याद रक्खे उम्र भर / आनंद कुमार द्विवेदी

कुछ और देखने दे, जरा जिंदगी ठहर,
मेरा रकीब कौन है और कौन रहगुजर

ईमान ही साथी है तो उसको भी देख लूं
कल तक तो यही दोस्त था मेरा इधर उधर

जो दो कदम भी साथ चले उसका शुक्रिया
मुद्दे की बात ये है कि, तनहा है हर सफ़र

दो घूँट हलक में गये, हर दर्द उड़न छू
बेशक बुरी शराब हो, पर है ये कारगर

मैं उस जगह से आया हूँ कहते हैं जिसे गाँव
अब तक नही है उसके मुकाबिल कोई शहर

खड़िया से किसी स्लेट पर लिक्खा गया था तू
‘आनंद’ ! तुझे कौन याद रक्खे उम्र भर