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कौन वह / सविता सिंह
Kavita Kosh से
लो रात अपनी स्याही में लिपटी हुर्इ अकेली
रिक्त अपने सपनों से आ गई
ओस उस पर ढुलमुल होती हुर्इ
एक काले गुलाब की पंखुरी पर जैसे
मुझ जैसी हो गई
दुनिया के कर्इ रहस्यों में से एक
खुद को समझती हुर्इ
मैं उसी की हो गई
मगर कौन है यह सपनों सा दौड़ता हुआ
जो आता है
मेरी काली देह में समा जाता है
कौन जो मेरी रातों को फिर से
हिला जाता है