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कौन हूँ मैं / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
तुम पूछते हो ना मैं कौन हूँ?
मैं तुम्हारा अक्स
तुम्हारा अपना विचार
तुम्हारी आँखें
तुम्हारा मन
तुम्हारी हँसी
तो कभी तुम्हारे आँसू बन आँखों से ठहरता ख़्वाब
तुम्हारा अपना
जो तुममें ही कहीं रहता हैं
निर्बाध
निर्विरोध
तुम्हारे अंदर ही पलता हैं