कौन हैं हम ? सिफ़र या महामानव ?
वैज्ञानिक या गायक की नस्ल जैसी कोई चीज़ नहीं ।
प्रतिभा इस मिट्टी में है ।
या तो तुम कवि हो या लिलीपुट हो !
समय के प्रभाव से बचे हुए, बचे हुए
समय के प्रभाव में -- जो भी हों हम ।
’कौन हो ?’ पूछता और चक्कर खाता है
दिमाग़ एक तेज़ी से दौड़ रही कार-सा ।
’कौन हो तुम ?’ मान लो कि तुम एक भूल हो,
बरसाती में ढँकी हुई ’वीनस की प्लास्टर की मूर्त्ति’
मुर्गे की तरह बाँग देती हुई मैना,
कवि में परिणत एक वास्तुकार ।
कौन हो तुम ? अभिनेत्री बनने की इच्छुक,
स्कूल से निकलते ही कटा अपने केश
एक दिन बन जाती हो तुम एक सेल्सगर्ल
दूसरे दिन नौकरी से त्यागपत्र !
धूप-छाँव खेलते से
आते हो तुम मास्को की सड़कों के आधे संसार में,
चौकन्ना होते हो, रुकते हो
थकते हो तुम मृगशावक, धूप में ।
संग-संग चलते हुए । कौन हो तुम ?
झाँकते किताबघरों में और लोगों की आँखों में
मापते उनकी निस्पन्द पुतलियों के आकाश को,
खिलौना-टेलिस्कोप, तुम कौन हो ?
रातों को सितारों की छाँव में,
तुम्हारे साथ घूमता उत्फ़ुल्ल, वेरा, वेगा,
मैं ख़ुद ही, हिमपिण्डों से घिरा,
वनमानव की तरह महज एक छाया हूँ ।