भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन है किस ने पुकारा है सदा कैसे हुई / सरमद सहबाई
Kavita Kosh से
कौन है किस ने पुकारा है सदा कैसे हुई
ये किरन तारीकी-ए-शब से रिहा कैसे हुई
एक इक पल में उतर कर सोचता रहता हूँ मैं
नूर किस का है मिरे ख़ूँ में ज़िया कैसे हुई
ख़्वाहिशें आएँ कहाँ से क्यूँ उछलता है लहू
रूत हरी क्यूँकर हुई पागल हवा कैसे हुई
उस के जाने का यक़ीं तो है मगर उलझन में हूँ
फूल के हाथों से ये ख़ुश-बू जुदा कैसे हुई
वो मचा है ग़ुल कि बरहम हो गई हैं सूरतें
कौन किस किस ये ये पूछेगा ख़ता कैसे हुई
जिस्म ओ जाँ का फ़ासला है हासिल-ए-गर्द-ए-सफ़र
जुस्तुजू-ए-ज़िंदगी तेरा पता कैसे हुई
हँस दिया था सुन के वो ‘सरमद’ बस इतना याद है
बात उस के सामने लेकिन अदा कैसे हुई