कौन है तुझ-सा सुरीला गुनगुनाते मन
आंसुओं की बारिशों में मुस्कराते मन
किस तरह आभारज्ञापन मैं करूं तुझ से
पतझरों में भी वसंती गीत गाते मन
मीत यों तो थे बहुत से, किंतु तुझ-सा कौन
हर अकेली सांझ में ढाढ़स बंधाते मन
नींद की गहरी ललक में तू रहा जागा
लोरियाँ मुझको सुना, सपने जगाते मन
भोर होते ही जगाया आस का सूरज
थपकियाँ देकर मेरे दुख को सुलाते मन
दृष्टि से जो दूर है, तेरे बहुत ही पास
आ ज़रा उससे करें दो चार बातें, मन