कौन है यह? / विनोद शर्मा
कौन है यह?
क्या इसकी शिनाख्त हो सकती है?
बीसवीं शताब्दी के मलबे मेंसे निकले
इस आदमी को देखो, यह अभी जिन्दा है
पर इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता
कौन है यह? कहां का रहने वाला है?
क्या है इसका अता-पता?
कोई नहीं जानता
जमाने ने इसका हुलिया इस कदर बिगाड़ दिया है
कि इसकी शिनाख्त नहीं हो सकती
इसकी आंखों में व्याप्त सूनेपन से
इसके चेहरे पर चढ़ी लाचारगी की परत से
डर से बंधी इसकी घिग्घी से
उस कालखण्ड की तो शिनाख्त हो सकती है
जिसमें यह जीता रहा
मगर इसकी खुद की शिनाख़्त नहीं हो सकती
इसकी शिनाख्त जिन कविताओं से
हो सकती थी
दुर्भाग्य से वे लिखी नहीं गई
किसके खौफ से कांपती है इसकी आवाज?
किसकी उपस्थिति भरती है सिहरन इसके जिस्म में?
किसकी निगाहें झकझोरती हैं इसका अस्तित्व?
किसके जुल्मों के बोझ से लड़खड़ाती है इसकी सांस?
इन सवालों को सुनकर जो चुप बैठा है
उसके मतदान से
कौन-सा लोकतन्त्र चल सकता है?
वही, जो है तो भेड़तंत्र
मगर जाना जाता है लोकतंत्र के नाम से।