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कौन हो तुम / महेन्द्र भटनागर

अँधेरी रात के एकांत में
अनजान
दूरागत.....
किसी संगीत से मोहक
मधुर सद्-सांत्वना के बोल
विषधर तिक्त अंतर में
अरे ! किसने दिये हैं घोल ?

कौन ?
कौन हो तुम ?
अवसन्न जीवन-मेघ में
नीलांजना-सी झाँकतीं
आबंध वातायन हृदय का खोल !

सृष्टि की गहरी घुटन में,
दाह से झुलसे गगन में,
कौन तुम जातीं
सजल पुरवा सरीखी डोल ?

कौन हो तुम ?
कौन हो ?
संवेद्य मानस-चेतना को,
शांत करती वेदना को !