भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन हो तुम / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
अँधेरी रात के एकांत में
अनजान
दूरागत.....
किसी संगीत से मोहक
मधुर सद्-सांत्वना के बोल
विषधर तिक्त अंतर में
अरे ! किसने दिये हैं घोल ?
कौन ?
कौन हो तुम ?
अवसन्न जीवन-मेघ में
नीलांजना-सी झाँकतीं
आबंध वातायन हृदय का खोल !
सृष्टि की गहरी घुटन में,
दाह से झुलसे गगन में,
कौन तुम जातीं
सजल पुरवा सरीखी डोल ?
कौन हो तुम ?
कौन हो ?
संवेद्य मानस-चेतना को,
शांत करती वेदना को !