भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौवा काग के राज भेंटाईल / गुलरेज़ शहज़ाद
Kavita Kosh से
कौवा काग के राज भेंटाईल
दादा रे दादा
सगरो सुन्नर गीत हेराईल
दादा रे दादा
अट्टा पट्टा मारे झपट्टा
नोंच ले गईल सब
अंजरा पंजरा भईल घवाहिल,
दादा रे दादा
हमरे कान्हि पs लात धइ के
भेंटल रजधानी
हमके छोड़लें जीरो माईल
दादा रे दादा
पंडित ज्ञानी टुकुर टुकुर
टुअर अस ताकेलें
राज करेलें हम पे जाहिल
दादा रे दादा
जातिवाद के आन्ही में
सब देख रहल बा लोग
रिस्ता नाता के उधियाईल
दादा रे दादा
धरम के नागिन फुंफ्के
बाजल रजनीती के बीन
नेह रीत के मुंह पियराईल
दादा रे दादा