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कौशल्या / आठमोॅ खण्ड / विद्या रानी

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भरत अइलये शत्रुघन के साथ,
सुनलकय सब कैकेयी सेॅ बात ।
जी भरि केॅ ओकरा कोसलकय,
कौशल्या केरोॅ भवन में गेलै ।

सब रानी छेलोॅ मूच्र्छित जुकाँ,
मैलोॅ कपड़ा जेवर विहीन ।
देखी सभै केॅ विह्नल व्याकुल,
भरत होय गेलोॅ आरू दीन ।

दुखोॅ सें भरली छेली कौशल्या,
जीते जी मरली छेली कौशल्या ।
भरत देखी केॅ कुहकै लागली,
दौड़ली चकराय केॅ गिरली कौशल्या ।

भरत होय गेलोॅ आरू व्याकुल,
हे माय राजा दशरथ देखाय दा ।
रामलखन सीता कहाँ गेलै,
सबटा खिस्सा हमरा सुनाय दा ।

बेटा तोरा तेॅ राज चाहियोॅ छेलै,
इ अकंटक राज इहां छिकौ ।
एक्के दुख हमरा छै रे भरत,
क्रूर कर्म सें पयलोॅ छिकौं।

हमरोॅ राम केॅ वनवास दिलवैलकोॅ,
अबेॅ कैकेयी हमरोॅ भेजे वन में।
नै तेॅ आपने चललोॅ जइवै,
हम्में रानी सुमित्रा केॅ संग में।

सच्चे कहे छियौं तोहैं पतियावोॅ,
हम्में नै कुछु जानें छियै।
निरपराध छियै हम्में बिलकुल,
राम केॅ कतना मानै छियेॅ।

हमरोॅ माता कैकेयी कैन्हे होलै,
होलै तेॅ फिनु बाँझे रहतियै।
हम्में तेॅ छियौ बहुत अभागलोॅ,
कुलनाशै के कलंक छै लगलोॅ।

हमरे कारण इ विपत्ति अइलै,
सब अपशय हमरा लगी गेलै।
भाय सिनी वन में पिता स्वर्ग में,
आगिन बनलिये बाँसो के वन में।

हमरोॅ करम कैन्हों लिखलकै विधाता,
बनि गेलियै राजो के दुखदाता।
हम्में कुछु कहनें छेलियै,
हमरोॅ माता बनलै कुमाता ।

कौशल्या जबेॅ होशोॅ में अइलै,
भरत शत्राुघ्न के गला लगैलकै ।
जेना रामे लौटी के अइलोॅ रहेॅ,
शोक आरू स्नेह दुनु मिली गेलोॅ रहेॅ ।

भरत के गोदी बैठलकै कौशल्या,
दुनु के बलैया लेलकै कौशल्या ।
लोर पोछी समझाावै कौशल्या,
नीति वचन बतावै कौशल्या ।

हे पुत्रा अबेॅ धीरज धरोॅ,
समयानुसार तोहें काम करोॅ।
कालगति जानि शोक छोड़ोॅ,
हिरदय मंे ग्लानि नै भरोॅ।

करमोॅ के गति अमिट छै बेटा,
काटेॅ ने पारेॅ सुख दुख के लेखा।
केकरोॅ कुछु नै दोष दहु तोहें,
असीम दुख तोहें झेल रे बेटा।

हे माता तोरा की बतलइयौं,
केना करि तोरा समझइयौं।
जौं एकरा में हमरोॅ हाथ छै,
पापी कृतघ्न अशक्त होय जइयोॅ।

गुरु निंदक आरू मित्रा के द्रोही,
सभै के पाप हमरे लगी जइतै।
दुरजन, दुराचारी, दुरात्मा के गति,
हे माता हमरे मिली जइतै।

जेकरा कहला पर इस सब होलै,
ओकरा पाप राजद्रोह के लगतै।
सेवक के वेतन नै दिये वाला के,
जे पाप छै ओकरे लगतै।

जौं एकरा में सहभागी होवै,
विप्रद्रोही के पाप लगतै।
पर स्त्राीगामी आरू शोषक के,
सभै पाप हमरे लगी जइतै।

हे माता जे पाप लगै छै,
राजा स्त्राी बाल बृद्धमारे में।
सबटा पाप हमरे लगी जइतै,
सत्य कहै छियौं अपना बारे में।

भरत के मुंह सें शपथ सुनी,
कौष्शल्या अति व्याकुल भेली।
हे पुत्रा कैन्हें ऐन्हों शपथ लै छौं,
दुखी माय के आरू दुख दै छौं।

हमरा देखोॅ केना जीला छोॅ,
एतना दुखोॅ में नै भरलोॅ छी।
की जानें विधना की चाहै छै,
सभै कुछ उलटा करी देनें छै।

राम लक्ष्मण आरू सीता,
राज वस्त्रा छोड़ी वलकल पहिरलकै।
हमरोॅ सामना इ सब होलै,
हिरदय तइयो नै फाटलकै।

मोह प्रेमवश राजा के कोसलियै,
हुनियो छोड़ी केॅ चलिये देलकै।
पत्थर हिरदय हम्में हे भरत,
अभियो ताँय बैठली छीयै।

नै परान गेलै पुत्रा के साथ,
नै तेॅ आपनोॅ पति के साथ।
बज्जर पत्थर होलिये हम्में,
विधवा बनि बैठलियै आज।

कौशल्या के विलाप सुनलकै,
भरत समेत रनिवास दुखि होलियै।
सभै मिली फिनु कानै लागलै,
अयोध्या सें सुख साज भागि गेलै।

हे पुत्रा अबेॅ धीरज धरोॅ,
समयानुसार तोहें काम करोॅ,
कठिन काल जानि शोक छोड़ोॅ ।
हिरदय में ग्लानि नै भरौ ।

करमोॅ के गति अमिट छै बेटा,
काटेॅ नै पारेॅ सुख-दुख के खेल ।
केकरो कुछु नै दोख दहु तोहें,
असीम दुख तोंहें झेल रे बेटा !

इ तेॅ छेवै करै निश्चित,
तोरोॅ चित्त धर्मात्मा छौं,
सत्यप्रतिज्ञ राम भक्तिरत,
तोरोॅ सव आचरण छौं ।

जे होलै से होइये गेलै,
ओकरा लेॅ की पछताना छै ।
आज अयोध्या के रक्षा ला,
तोरा ही राजा बनाना छै।

आज अयोध्या अनाथ छिकै पुत्रा,
कोय न राजा छै हियां ।
राज संभारोॅ तोहें जल्दी सें,
आवि नै जाये संकट कहीं सें ।

हम्में केना राजा बनिये माता,
राम बिना हम्मु छिये अनाथ ।
हठ करि केॅ राज देॅ देबौ
रसातल में धरणी केॅ पैइबोॅ ।

गुरु वशिष्ट सुमंत सभै मिली
भरत के राजा बनैलेॅ कहलकोॅ ।
कौशल्या समेत सभै रानी
इ बातोेॅ के समर्थन करलकोॅ ।

भरत तभियो नै तैयार छेलै,
मूढ़ा पकड़ि बैठलोॅ छेलै ।
पागल माय केेॅ कुकर्मो पर
माथो घुमी रहलोॅ छेलै ।

हमरोॅ एक्के ठो रोग छै
ऊ रोगोॅ केॅ दहु हटाय ।
जाय तांय रोग नै हटतै,
हम्में नै राजा बनभौं माय !

की रोग छौं तोरोॅ हे सुत,
साफ-साफ सबकेॅ कहोॅ ।
राज सिंहासनपर बैठी केॅ,
उबारोॅ अयोध्या के भार गहोॅ ।

राम लखन सिय बिनु पगत्राण,
वल्कल पीन्ही जंगल में घूमै छै ।
इ दुख हिरदय जरावै छै हमरोॅ,
भूख नींद कुछु नै आवै छै ।

जाय तांय इ दुख दूर नै होतै,
ताय तांय राजा बने नै पारै छियै ।
बिनु देखलेॅ राम सिया के पग,
मनोॅ के ताप बुझै नै पारै छै ।

इ दुख दूर करोॅ पहिरे हमरा,
तबेॅ राजा बनावेॅ लेॅ सोचोॅ।
नै तेॅ हमरा ऐन्हें छोड़ी दौ
राम के पास जाय लेॅ सोचोॅ ।

अच्छा भरत अभी तेॅ करना छै,
राजा के शव केरोॅ आगिन काज ।
एकरोॅ परबन्ध जल्दी करवावोॅ,
पुत्रा धरम तोहें शीघ्र निभावोॅ ।

फिनु विलाप में डूबी केॅ भरत,
सब इंतजाम करेॅ लागलोॅ छेलै ।
तात गेलोॅ राम के बन भेजलकोॅ,
इ धरती तेॅ अनाथे होय गेलै ।

धीरज दै बहु भांति समझाय केॅ,
दशरथ रोॅ सराध मुनि करवैलकोॅ !
शोक सहित कौशल्या सब रानी,
बाहर दिन के वरत रखलकोॅ ।

सब कुछ संपन्न होला पर,
चललै भरत राम के पास,
राज करै लेॅ राम लौटतै,
एकरोॅ ओकरा बहु छेलै आस ।

भरत के संग सब अयोध्यावासी,
तीनो रानी अरू रनिवास ।
संगे जाय लेॅ तैयार होलै,
देखै लेॅ राम सिया के वनवास ।

कैकेयी कुछु कहै नै पारलै,
जे सुत लेॅ इंतजाम करलकै,
वही रहलोॅ छै दोसी बनाय,
की करै कुछु कहलो लै जाय ।

कौशल्या नें कुछु नै कहलकै,
मरला के हुनी की मारतियै ।
कठिन काल केरी गति जानि केॅ
धीरज धरि सब प्रबन्ध करलकै ।

भरत तेॅ राजा बनवे नै करै छै,
रामोॅ के वापस आनै लेॅ जाय छै ।
राम ऐतै की नै ऐतै
हम्मैं कुछु नै कहेॅ पारेॅ छियै ।

हुएॅ कि पिता मरण के बात सुनि,
राम कुछु बात मानी लेॅ,
अयोध्या के डगमग जहाज केॅ,
पतवार कस्सी केॅ थापी लेॅ ।