भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौशल्या / पाँचमोॅ खण्ड / विद्या रानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक तरफ कौशल्या अँचरा पसारलकोॅ,
दोसरोॅ तरफ कैकेयी तिरिया हठ ठानलकोॅ।
दिनोॅ में सब मिली जे करलकेॅ विचार,
राति सब बदली गेलै होलै कचार।

जखनी राजा कैकेयी कन गेलोॅ,
प्रिय रानी के भूलंठित देखलकोॅ।
इ समाचार पहिले पहुँची गेलोॅ छेलै,
मंथरा कान फुँकी देनेॅ छेलै।

जेवर बिना भुइयाँ पर सुतली,
बनी गेली छेली कालोॅ के पुतली।
राजा बोललकोॅ अति घबराय,
की होलौ रानी इ दहु बताय।

तिरिया चरित्तर कैकेयी देखेलकै,
भरतोॅ लेॅ राज मांगी लेलकै।
राम केॅ दहु चैदह बरस बनवास,
तबेॅ पुरतै हमरोॅ मनोॅ के आस।

हे ईश इ की होय गेलै ।
तिरिया हठ मं हमरा फँसैलेॅ,
कैकेयी के तीनो वरदान ।
राजा केॅ खीचें लागलै परान,

काल रात्रि बनी अइलै इ रात,
उलटि-पुलटि गेलै सब सोचलोॅ बात।
राजहिय हाहाकार करेॅ लागलै,
कौन पाप सें इ दिन अइलै।

तोहें तेॅ जानवे करै छोॅ कैकेयी,
कतना प्रिय छै पुत्रा राम हमरोॅ।
जौं उ वन जइतै तेॅ निचित ही,
हमरो परान नै रहतौं बचलोॅ।

कैकेयी तेॅ बात नै मानलकोॅ,
राम वनवास केरोॅ हठ ठानलकोॅ।
इ भी हुनका नै छेलै स्वीकार,
भरत राजा बनेॅ राम रहै यहीं पर।

राजा नें तेॅ यहू कहलकै,
जौं राम जइतै हम्में मरी जइबै।
भरतोॅ के राज में विधवा बनी केॅ,
तोहें केना करि सुख पैइवेॅ।

हमरोॅ बात नै मानबोॅ तेॅ,
हम्में आजे ही मरी जैइभौं।
वचन भंग के पाप तोरा लगतौं,
हाथ मली तोहं पछतैभौ।

वचन विवश छेलोॅ राजा,
गिरलोॅ धरणी पर महाराजा।
काल कठोर हाँसै छैलै,
रानी केॅ बुद्धि हरी लेलकै।

राति भर राजा कानें छै,
नाना विधि हुनका मनावै छै।
अनहोनी होनी होय गेलै,
बजर मूठ धरी रानी जीतलै।

भोरे मंत्राी सुमंत देखै छै,
अभियो ताँय जगलोॅ नै छै।
राजा के मोॅन खराब छै,
राज्याभिषेक के बात भुलैलोॅ छै।

गुरु वशिष्ठ भी आवि गेलोॅ छेलै,
सभै समान केरोॅ निरीक्षण करलकै।
की तैयारी छै बात पूछलकै,
ताम झाम सब की की होलै।

कहलकोॅ सुमंत ठीके छै गुरुदेव,
झपझप करै छियै पूरा निर्देश ।
सौंसे नगरी के सजाबै छी,
राज्याभिषेक के बात बतावै छी ।

झप-झप सबटा काम करना छै,
राजमुकुट राम सिर धरना छै ।
एकरा में देरी केना छै,
राजा कैन्हें नै अयलोॅ छै ।

कैकेयी महल जाय देखै छै,
परेशान बदलहाल छै राजा
अचरज भरलोॅ ठक रहलोॅ सुमंत,
होलै सब हुलासोॅ के अंत !

वशिष्ट मुनि आवी गेलोॅ छै
विप्रगण, कुमारियो अइलोॅ छै !
सभै तैयारी होय गेलै,
पुष्य नछतर भी आवै वाला छै !

देखी भवन सुमंत अयलोॅ छै
कैकेयी नें कठिन वचन सुनैलकै !
जाहु सुमंत रामोॅ के बालावोॅ,
एकरा राजाज्ञा ही समझोॅ ।

भौंचक सुमंत इ की देखै छी,
रानी गोस्सैलोॅ राजा मूच्र्छित छै ।
तनि समझै के कोशिश करलकोॅ
भ्रमित देखी कैकेयी कहलकोॅ ।

जे हम्में कहीं रहलोॅ छी समझोॅ,
जल्दी आज्ञा के पालन करोॅ ।
धको में तोरोॅ कैन्हें परान छौं,
रूकलोॅ छौं इहां कैन्हें हरान छौ ।

इ की होलै सुमंत भौचक छेलै,
राजा दशरथ के हालत लचर छेलै।
लौटि गेलोॅ करै लै आज्ञा पालन,
काल जेना पहुंची गेलै राजभवन ।

बदहवास सुमंत चलै झटकी-झटकी,
दास-दासी सब रहलोॅ हड़बड़ाय ।
ऐन्हों कैन्हें राजमंत्राी घबड़ैलोॅ छै,
की होलोॅ छै, के देतै बताय ।

की होलै तोहें कैन्हें घबड़ैलोॅ छौ,
अपनोॅ मुखोॅ पर ग्रहण लगैलेॅ छौ ।
अभी नै पूछौ नै कहेॅ पारवौं,
जे होतै से तेॅ जानिये लेवौ ।

उधियैलोॅ दूधोॅ में जेना नेमू पड़लै,
एक ठो शंका तेॅ पसरी गेलै।
जे-जे करै छेलै वहीं रुकी गेलै,
सुन्दर वनोॅ में दावानल लगी गेलै ।

फुसफुस फुसफुस सब करेॅ लागै,
देखलियै सुमंत केॅ अति घबड़ैलोॅ ।
राजा अभियो तांय नै उठलोॅ छै,
अवश्य कुछु अचंभा छै होलोॅ ।

गेलोॅ सुमंत राम के पास
मन धड़कै छेलै मुंह उदास ।
राम सिंहासन पर सीता पास
बैठी विचारै छेलै उत्सव के बात ।

देखी सुमंत सीता उठि गेलै,
मंत्राी राम देखि सुख पैलकै ।
हे राम, सुनोॅ हमरोॅ बात,
तोरा बोलावै छौं तात आरू भात ।

कैकेयी भवन में छौं राजा
हमरा संगे तोहें चलोॅ वहां,
राजाज्ञा के पालन करोॅ
माता-पिता के संताप हरोॅ ।

झटपट राम उठि चली देलकै,
एको छन नै देरी करलकै,
कैन्हें सुमंत छै ऐन्होॅ हड़बड़ैलोॅ,
कुछु न कुछु गड़बड़ छै होलोॅ ।

कैकेयी कक्षोॅ में राम लखन गेलै,
पिता विवर्ण माता क्रोधित पैइलकय ।
की होलै माता तोहें दहु बताय,
तात कैन्हें एतना दुखी छै आय ।

की अपराध हम्में करनें छियै,
तात कैन्हें नी होश धरनें छै ।
कैकेयी कहलकी सुनु हे राम,
हम्में मांगलियै दूइ वरदान ।

राम के बदले भरतोॅ के राजा बनावोॅ,
मुनिवेश में राम केॅ वन भेजोॅ ।
चैदह बरस उहां रहतै राम
तबेॅ जाय पुरतै हमरोॅ वरदान ।

तोरे लेॅ राजा दुखी छौं,
वन जावे ल कहै नै पारै छौं ।
जाय तांय तोहंे वन न जइबौ,
राजा के मोन थिर नै होतौ ।

दशरथ कानि-कानि विह्नल छेलै,
प्रिय पुत्रा रामोॅ के हृदय लगैलकै !
कैकेयी केरोॅ वचन सुनी केॅ
फिनु बेहोश हुनी होय गेलै ।

राम आज्ञा धारण करलकै,
परिक्रमा करि गोड़ लगलकै ।
बिनु रथ चामर के चललै राम
आपनोॅ माय कौशल्या के धाम ।