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कौसानी में घर की याद / सिद्धेश्वर सिंह
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कैसे-कैसे
करिश्माई कारनामे
कर जाता है एक अकेला सूर्य....
किरणों ने कुरेद दिए हैं शिखर
बर्फ़ के बीच से
बिखर कर
आसमान की तलहटी में उतरा आई है बेहिसाब आग ।
कवि होता तो कहता --
सोना - स्वर्ण - कंचन - हेम...
और भी न जाने कितने बहुमूल्य धातुई पर्याय
पर क्या करूँ --
तुम्हारे एकान्त के
स्वर्ण-सरोवर में सद्यस्नात
मैं आदिम-अकिंचन... निस्पॄह.. नि:शब्द..
क्या इसी तरह का
क्या ऐसा ही
रहस्यमय रोशनी का-सा होता है राग !