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कौसानी में सुबह के चार चित्र-4 / सिद्धेश्वर सिंह

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पूरब में
आधा उगा सूर्य
पच्छिम में
अस्त होने को आतुर पूरा चाँद
बीच में खड़े हैं
नींद में डूबे - उनींदे पहाड़
अंधियारे की चादर को
चीर रहे हैं चीड़ के नुकीले पात ।
इस अधबनी सड़क पर मैं हूँ
हिमशिखरों की छाया के साथ-
एकान्त
तुम वहाँ कहीं दूर
चलो कोई सुने या नहीं
कह लेते हैं - शुभ, शुभ प्रभात ।