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क्या आज उन से अपनी मुलाक़ात हो गई / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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क्या आज उन से अपनी मुलाक़ात हो गई
सहरा पे जैसे टूट के बरसात हो गई
वीरान बस्तियों में मिरा दिन हुआ तमाम
सुनसान जंगलों में मुझे रात हो गई
करती है यूं भी बात मुहब्बत कभी कभी
नज़रें मिलीं न होंट हिले बात हो गई
ज़ालिम ज़माना हम को अगर दे गया शिकस्त
बाज़ी मुहब्बतों की अगर मात हो गई
हम को मिटा सकें ये अंधेरों में दम कहां
जब चांदनी से अपनी मुलाक़ात हो गई
बाज़ार जाना आज सफल हो गया मिरा
मुद्दत के बा`द उन से मुलाक़ात हो गई