क्या इसमें अब सिज़दा करना / विनय कुमार

क्या इसमें अब सिज़दा करना, उसमें शीश झुकाना क्या।
दोनों बने हुए हैं मोहरे क्या मिस्ज़द, बुतखाना क्या।

दोनों की आँखों में लालच दोनों के दिल में हथियार
फोटो खिंचवाने कि ख़ातिर हँस कर हाथ मिलाना क्या।

खेतों ने फसलें खोयी हैं लेकिन कोख सलामत है
चिडियों ने जब चुगा नहीं है तुमको तो पछताना क्या।

सच का सूरज नहीं डूबता आँख फेर लेते हैं हम
है सबको यह बात पता अब इसको राज़ बनाना क्या।

लाख हसीन बहाने हों पर तुमको जे़ब नहीं देते
आना था तो आ ही जाते जाते-जाते आना क्या।

दरवाज़े हो गए मुक़फ्फ़ल, हर खिड़की दीवार हुई
तोड़े बिना नहीं निकलोगे चाहोगे मर जाना क्या।

सुख जीवन में ऐसे आता है जैसे पानी में चांद
कहते हैं अनुभवी मछेरे इस धन पर इतराना क्या।

अब फ़िक़रों में फ़ँसने और फँसाने से परहेज़ इसे
फ़िक्रें बदल गयीं शायर की अब उसको समझाना क्या।

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