क्या इसीलिए जन्मा राम के अवध में / बोधिसत्व
कुछ आवाज़ें आ रही है
इन आवाज़ों में घुले हैं कई स्वर
कभी लगता है कि ये बहुत दूर से आ रही आवाज़ें हैं
कभी लगता है कि घर में ही उठ रही है यह आवाज़
या घर के पीछे का कोलाहल है यह ।
कई लोग हैं और लगातार बोल रहे हैं ।
कभी कभी ये आवाज़ें रुलाई की तरह लग रही है
दारुण दुख से उपजी रुलाई की तरह
कभी शोक में डूबी
कभी हाहाकार की छाया-सी
कभी आर्तनाद-सी
जैसे घर जलने पर रो रही हों औरतें
जैसे लोथ गिरने पर चारों दिशाओं में धूँ-धूँ उठता है
इनमें कोई सुबक रहा है
कोई भर रहा है सिसकी
कोई चुप करा रहा है किसी को
लगता है यह दुनिया रुलाई की आवाज़ों से भर गई है
मुझे नहीं सुननी ये रोने की आवाज़ें
यह गिड़गिड़ाहट
यह बुक्का फाड़ रोर क्यों सुनूँ मैं
क्या इसीलिए जन्मा राम के अवध में
कि रुलाई के घिर कर रहता रहूँ
घर में घुस कर भी बच न पाऊँ रुलाई से ।
मैं खिड़की-दरवाज़ा बंद कर सोने की कोशिश करता हूँ
लेकिन इन आवाज़ों का क्या करूँ
जो रोकने से भी नहीं रुक रहीं ।
वे दीवार और दरवाज़ों से छन कर आ रही है
भीतर मुझ तक अँधेरे कमरे में ।
आवाज़ों के लिए अँधेरे उजाले का कोई फ़र्क नहीं होता
क्या इन आवाज़ों को रोका नहीं जा सकता
मुझ तक पहुँचने से ।
जब वो नहीं होगी तब भी होगी उसके न होने की आवाज़।
गुर्राहट न सही हकलाहट की तरह
नारा न सही रिरियाहट या बुलाहट की तरह
वैसे अब भी आ रही इन आवाज़ों से दूर जाना चाहता हूँ
मैं दूर जाना चाहता हूँ थोड़ी देर के लिए
लेकिन ये मुझ तक आती जा रही हैं लगातार ।
क्या करूँ
कैसे बचूँ इन आवाज़ों से
तुम्हारे पास कोई उपाय है
आवाज़ों को रोकने का ।
क्या उठना होगा और जानना होगा कि
यह किनकी और कैसी आवाज़ है
क्या आवाज़ों को दरकिनार नहीं किया जा सकता
क्या सो नहीं सकता एक गहरी नींद हाहाकार के बीच ।
उन आवाज़ों में कोई फेरी वाला है क्या
कोई फकीर, कोई साधू, कोई अवधूत, कोई जोगी, कोई किसान
कोई बढ़ई, कोई धुनिया, मिरासी कोई, कोई टिटहरी
कोई नुनहारा, कोई लकड़हारा, कोई पड़ोसी, कोई पूर्वज, कोई संबंधी ,
कोई परिचित , कोई राहगीर
या मेरी अपनी ही आवाज़ है यह
कहीं खो गई बहुत पुरानी आवाज़
मुझे तो याद नहीं कि मैंने कब नारा लगाया
कब किसी को बुलाया, जगाया
पता नहीं कितने लोग हैं
उधर जो मिल कर एक आवाज़ हो गए हैं
और बोलते ही जा रहे हैं ।
कब तक जागता रहूँगा बंद घर में
कब तक बाहर नहीं निकलूँगा
कब तक इस आवाज़ का हिस्सा नहीं बनूँगा
मुझे बाहर निकलना ही होगा
बनना ही होगा इस आवाज़ का भाग
कब तक अकेले में गा पाऊँगा यह मौन का राग ।