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क्या उन से आँख लड़ा बैठे / परमानन्द शर्मा 'शरर'
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क्या उन से आँख लड़ा बैठे
इक उम्र का रोग लगा बैठे
बेताबी-ए-दिल कुछ और बढ़ी
जब उनको पास बुला बैठे
कुछ दर्द का दिरमाँ हो न सका
हम दिल के दाग़ दिखा बैठे
हर गाम पे अब रुसवाई है
क्यों दिल का हाल सुना बैठे
वि बाज़ी-ए-इश्क़ में जीत गए
वो दौलत-ए-होश लुटा बैठे
कुछ फ़र्ज़ है आयद शम्मा पर
परवाने ‘पर’ झुलसा बैठे
अब उनकी शर्तें वफ़ा जाने
हम अपना फ़र्ज़ निभा बैठे
जो बीती ‘शरर’ वो बात गई
क्या सोच रहे हो भला बैठे