भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या करे एतिबार अब कोई / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
क्या करे एतिबार अब कोई
रूठ जाये न जाने कब कोई
वो तो ख़ुशबू का एक झोंका था
उस को लाये कहां से अब कोई
क्यों उसे हम इधर उधर ढूंढे
दिल ही में बस रहा है जब कोई
वो हसीं१ कौन था, कहां का था
पूछ लेता हसब-नसब कोई
प्यार से हम को कह के दीवाना
दे गया इक नया लक़ब कोई
आज दिन क़हक़हों में गुज़रा है
रो के काटेगा आज शब कोई
उस से क्या अपनी दोस्ती 'रहबर`
वो समझता है ख़ुद को रब कोई