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क्या करे कोई / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग

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प्रेरणा की शक्ति जब बन जाय दुर्बलता,
क्या करे कोई?

जब बहारें भी मिलें अंगार-सी जलती
बाग़वानों की न जब हो एक भी चलती
त्याग दें जब फूल अपनी स्निग्ध कोमलता,
क्या करे कोई?

मानते मनुहार से कब हैं हठीले मीत,
लाख अपनापन मिटा दें नेह गीले गीत,
किन्तु फिर भी इस हृदय पर वश नहीं चलता,
क्या करे कोई?

चाहता है मन भुला दे अनहुई बातें,
सह सका है कौन अपनों की कुटिल घातें,
प्रीत का पर्याय है रंगीन असफलता,
क्या करे कोई?