क्या कर जायेंगी मशीन / सुनील कुमार शर्मा
क्या कुछ नहीं लेकर आयेंगी ये मशीन,
रिश्तों के पुर्जे से लेकर कारखाना तक बनायेंगी मशीन
उनका भी मन होगा, सोच होगी,
शायद नित नयी कल्पनाएँ बनायेगी ये मशीन।
लड़ेगी, झगड़ेगी, मरेगी, मारेगी,
जैसा बँटा है आज इन्सां, क्या ऐसे ही बँट जायेगी मशीन
प्यार, इश्क़, नफ़रत का होगा कोड,
दर्द होता है, क्या वह भी
लफ़्ज़ों में बयाँ कर जायेगी मशीन
चलो अच्छा है काम आयेंगे, हमारे क़ायदे-क़ानून
समाज अपना भी तो बनायेंगी ये मशीन
हर मशीन की अलग-अलग फ़ितरत होगी,
कहीं ख़ुदा खोजने में तो नहीं लग जायेंगी कुछ मशीन
आज जीवन की राहें हम बनाते हैं, बिगाड़ते हैं,
कल क्या हर राह बतायेगी मशीन
विकास कहाँ तक दौड़ लगायेगा,
यदि हमने नहीं सोचा तो, कल हद बनायेगी कोई मशीन
जो न कर पाये हम वह कर जायेगी
अब तो बोट-रोबोट हो जायेगी मशीन
कहते हैं बहुत कुछ बदल जायेगा,
इन्सां को बैठा कर दुनिया बनायेगी मशीन॥